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आलेख,,शीर्षक, आखिर अहँकार इतना क्यों?(लेखिका श्रीमती हरवंश डांगे, अयोध्या नगर भोपाल)

क्यों अहँकार करता है बंदे?
अहंकार की उत्त्पति उसकी अविधा रूपी अज्ञान से होती है। ये एक ऐसी भावना है ,जिसमे  ऐसा लगता है कि  मैं ही सब कुछ हूँ,मैं ही सब जानता हूं,मैं ही शहंशाह हूँ, सबको  नीचा दिखाना,दुसरो को नीचा दिखाकर खुद को सर्वोत्तम मानना ही अहंकार है। अहंकार ऐसा रोग है जो विद्वानों और ज्ञानियो को भी गर्त में भेज देता है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण रावण है।जिसका हश्र क्या हुआ था सबको मालूम है। जो खुद को स्वयंभू भगवान मानता था। अहंकारी दुर्योधन यदि 5 गांव दे देता तो महाभारत का युद्ध न होता। अकबर मरते समय कही और  युद्ध कर रहा था ,वह अपने वजीरो से बोला मेरा सब कुछ ले लो मुझे मेरी जन्मभूमि अमरकोट (जो कि इस समय पाकिस्तान में है) जाकर मेरी मां से मिला दो लेकिन ऐसा हो ना सका क्योंकि सांसे गिन कर मिली हैं अगली सांस आए या ना आए कोई भरोसा नहीं है क्योंकि भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती द्वापर में भगवान कृष्ण ने कहा है कि इंसान ना कुछ लेकर आता है ना कुछ लेकर जाता है यहीं से लेता है और यहीं पर छोड़ जाता है फिर अहंकार क्यों? अंत में 2 गज जमीन और गद्दे पर सोने वाले बांसों वाली सीढ़ी पर श्मशान जाते है हलवा पूरी खाने वाले क्रिया कर्म में भी जौ की पिंडी नसीब होती है फिर अहंकार क्यों?
महान सिकंदर एक ऐसा राजा था जो दुनिया को जीतने का दम भरता था और यही ख्वाब देखा करता था मौत को हराने का दावा करने वाले सिकंदर मौत से डर गया, और समझ गया कि जीत धन दौलत अहंकार, घमंड सब झूठ है सिर्फ मृत्यु ही एक मात्र सत्य है सिकंदर ने दुनिया को संदेश देने के लिए अपने महामंत्री से कहा मेरे मरने के बाद मेरी तीन इच्छाएं पूरी की जाएं
1. जिन हकीमो ने मेरा इलाज किया वह सब मेरे जनाजे को कंधा देंगे ताकि पता चले कि लोग इलाज करने वाले हकीम भी मौत को हरा नहीं सकते।
2. जनाजे की राह में मेरी सारी दौलत बिछा दी जाए ताकि पता चले कि मौत के आगे धन दौलत की कोई कीमत नहीं है।
3. सिकंदर ने कहा जब मेरा जनाजा निकले तब उसके दोनों हाथ कफन से बाहर निकाले जाए ताकि दुनिया को पता लगे कि इंसान खाली हाथ आता है खाली हाथ जाता है फिर अहंकार क्यों?
अहंकार एक ऐसी आग है जिसमें अहंकारी तपता और जलता है समय रहते यदि घमंड नहीं छोड़ता तो उसी आग में जलकर राख हो जाता है।आप अपनी प्रतिभा के बल पर कितने लोकप्रिय और मान्य क्यों ना हो लेकिन यदि अहंकार है तो आपका मन कहीं ना कहीं अशांत ही रहेगा अहंकार एक ऐसा रोग है जो जीवन, रिश्ते नाते, को घुन की तरह कहा जाता है। प्रकृति भी अहंकार ना करने का संदेश देती है जैसे जब पेड़ों में फल आ जाते हैं तो भी झुक जाते हैं,बादलों में जब जल आ जाता है तो भी बरस जाते हैं, व्यक्ति जब नम्र होकर परोपकारी होकर अनकार त्याग देता है तो दुनिया उसका सम्मान करती है उसका मन शांत रहता है प्रभु के नाम का जाप करते
“जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए, किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा, छोड़ अहंकार बंदे पार हो जाएगा।”


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