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आलेख

शीर्षक शिक्षा आभासी माध्यम से विश्व हुआ असमंजस में

लेखिका-निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ मध्यप्रदेश

*मानव मस्तिष्क सभी जीवों में सबसे पूर्ण विकसित होता हैं ।कारण भी हैं , इसकी शारीरिक क्षमता भी अन्य जीवों की तुलना में सरल हैं। फिर बात जब विद्यार्थियों की आती है तब चिंतन मनन बढ़ना स्वाभाविक सी बात है।खासकर कोरोना संक्रमण के समय में*
विश्व मे कोरोना संक्रमण के चलते विद्यार्थियों की सभी शिक्षण व्यवस्थाओ पर खास प्रभाव पड़ा हैं विश्व मे अगर कोरोना के चलते शिक्षा की बात करे तो विदेशी शिक्षा पद्धति व भारत में वर्तमान शिक्षा पद्धति में,बहुत अंतर है । तकनीक की बात करे तो उसमें भी विदेशी आगे हैं पर क्यों ,ये कारण जानना हमारे लिए अति आवश्यक हैं। विदेश भारत से आगे हैं ओर होगा भी क्योंकि तिहोत्तर वर्ष तक ब्रिटिशर व मुगलो के पराधीन कालखण्ड में सबसे पहले यहां की शिक्षा व्यवस्था की जांच पड़ताल की तब उनका उद्देश्य एक ही था ।पराधीनता से पूर्व भारत की शिक्षा व्यवस्था व सम्पन्नता का हर दृष्टिकोण अध्यात्मवाद व वैज्ञानिकता पर आधारित था लेकिन यहां की सरलता, सहजता , व अतिथिसत्कार अपने आप मे अनूठा था । हर बच्चा अपने गुणों के आधार पर आत्मनिर्भर बन कर सकुशल वयस्क होने तक परिवार का पालन पोषण करता था ।ये बात इन विदेशियों के कुंठित मन को कचोटती रही तब तक जब तक यहां की हर व्यवस्था को अपने अधीन नही कर लिया ।
जब 1947 में भारत को आधी अधूरी स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब साम्यवादियों ने सर्वप्रथम शिक्षा मंत्रालय ही अपने हाथ लिया कारण उनकी मंशा यहां के नन्हों को इतना मानसिक व शारीरिक रूप से भटका दे कि बडा होते होते सिर्फ पूर्णतः शिक्षा में ही उलझ जाए। इसके विपरीत उन्होंने अपने देश में वह व्यवस्था जो पूर्व में गुणवत्ता के आधार पर भारत मे थी उसे सुचारू रूप से अपने यहां लागू कर दी । भारत मे साम्यवादी विचार धारा के शासकों ने मिलकर यहां के नन्हों पर कक्षाओं के साथ छ: छ: विषयो का बोझ डालकर इनके पालकगण को भी इनकी शिक्षा में उलझा दिया ओर शुरू किया शिक्षा का व्यापार जिसे आज भी हम समझ नही पा रहे ।लेकिन कब तक ये सब चलता ? अब काफी संघर्षो के बाद वही शिक्षा पद्धति जो पराधीनता के पूर्व में हमारे भारत को पूर्ण आत्मनिर्भर बनाने में सहायक थी बहुत संघर्षो से उसे लाने का प्रयास *नई शिक्षा पद्धति* द्वारा किया जा रहा है।
अब बात करे वर्तमान की तो विचारणीय हैं कि एक बच्चा सुंदर से खिलोने (मोबाइल) के प्रति आकृष्ट होता हैं जो उसके चित्त को डगमगाते रहता है जिसमे आंख, नाक ,कान ,त्वचा ये सभी संवेदी अंग इस संसाधन में उलझ जाते रहे और क्षणिक मात्र सुख देते इस संसाधन से वह खेलता रहता है।
वर्तमान में विगत दो वर्षों से कोरोना संक्रमण काल में कई संकटो से घिरा रहा है। कभी कुछ सम्भावना सुरक्षित होने की नजर आती हैं तो कभी नगण्य हो जाती।
वही आती शिक्षा जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन की बयार ने शिक्षक, पालक व विद्यार्थियों को असमंजस में डाल दिया बस जैसे-तैसे समय व विषय कट रहा है ।
हालांकि इसमें किसी को दोष नही दिया जा सकता क्योंकि वर्तमान समय सिर्फ मानव जीवन संरक्षण को ही ज्यादा केंद्रित करना आवश्यक हो गया है । आज सुरक्षित जीवन सबसे ज्यादा जरूरी हैं जिसमे हमारे बच्चे या विद्यार्थी है जो परिवार ही नही देश के भी कर्णधार हैं।
लेकिन जब बात विश्व के इस समय तीसरी लहर से जूझने की है तो देखा गया कि विदेशों में भी शिक्षा जगत में इस समय असंख्य चुनोतियाँ सामने आई हैं। वही यूरोप व दुनियाँ की बात करे तो नीदरलैंड ने एक श्रेष्ठ उदाहरण शिक्षा में किया । नीदरलैंड में स्कूल खर्च व अन्य सुविधाओं के लिए कोरोना प्रारम्भ होते ही तीन माह में ही कई प्रबन्ध कर लिए थे जिसमें देश के आर्थिक सहयोग व विकास संगठन (आई ओ सी डी) जिसने विद्यालयों में ब्रॉडबैंड सुविधा व बैंचमार्क विद्यार्थियों की सुरक्षा हेतु कार्य कर लिए । जिससे विद्यार्थियों को शिक्षण असुविधाजनक नही लगा ना ही शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई। बात सिर्फ सुविधाओ की नही वरन उनके सुचारू रूप से क्रियांवयन की भी होती है।
लेकिन विदेशों में ओर भारत मे लॉक डाउन के मध्य कई समस्याएं समान देखने मे आयी जैसे वहाँ निम्न वर्गीय कई परिवार जो ऑन लाइन अध्ययन हेतु नेट का खर्चे की पूर्ति नही कर पा रहे, वही इन सब असामान्यताओं के चलते विद्यार्थी शिक्षा से दूर हुए व कई कम उम्र में ही लिव इन रिलेशनशिप में आ गये व परिवार भी बस गए सैकड़ो ड्राप आउट हुए यही स्थितियां भारत मे भी हुई ।
यद्धपि भारत मे महाराष्ट्र व दिल्ली में ऑफ़ लाइन स्कूल की आरम्भ हुए ।मुम्बई में अध्ययनरत दसवीं कक्षा की छात्रा रिया से स्कूल में चल रहे इस समय नियम व उनके पालनार्थ बात हुई जिसमें रिया द्वारा बताया गया कि स्कूल में ऑफ़ लाइन स्टडी जैसे ही शुरू हुऐ नए नियम बने हैं जिसमे उन्हें मास्क नही उतारना व सेनेटाइजर साथ लाना है , लंचबॉक्स में रोटी या पराठा का रोल बनाकर घर से लाना है, स्कूल में ब्रेक भी सिर्फ 5 से 10 मिनिट का कर दिया गया व खाना क्लास में अपनी सीट पर ही खाना हैं व स्कूल में भी नियमित थर्मामीटर गन व सेनेटाइजर का नित्य उपयोग किया जाता हैं। ऐसे में स्टडी भी अच्छी चल रही ।
वही इंदौर अध्ययनरत दसवीं की छात्रा महक ने कहा कि ऑन लाइन अध्ययन के चलते उन्हें अपने परिणामो से पूर्ण सन्तुष्टि नही है चूंकि महक सेल्फ़ स्टडी में ज्यादा विश्वास करती हैं व वर्तमान में स्थितियां देखते हुए उसने स्वयं को ऑनलाइन क्लासेस के अलावा सेल्फ स्टडी पर ज्यादा फोकस किया है और वह अग्रिम कक्षा को ध्यान रखते हुए अपनी तकीनीकी गुणवत्ता को बढ़ा रही हैं।
यद्धपि भारत मे सभी जगह तीसरी लहर को ध्यान रखते हुए 15 से 18 वर्ष के किशोरवयो को टिकाकरण करके उन्हें सुरक्षित कर दिया गया है जिससे अब डरने की जरूरत नही रही भारत टिकाकरण का प्रतिशत भी विश्व मे अग्रणी है । अगर कुछ छूट रहा हैं तो कोरोना संक्रमण क्षति में योजनाओ के लाभ का निचले स्तर से लोगो तक ना पहुचना ।
वही शहरो और अंचल में मध्यम व निम्न वर्गीय परिवारों में ऑन व ऑफ़ लाइन स्टडी ने अंसख्य चुनोतियाँ खड़ी कर दी हैं जहाँ पढ़ने लिखने में विद्यार्थियों की रुचि कम होती जा रही ।वही सैकड़ो विद्यार्थियों पर आजीविका चलाने का कहर भी टूटा है। विगत कई वर्षों से अंचल में अध्यापन कार्य से जुड़े रहते हुए मेने जाना कि यहाँ बाल श्रमिक व बाल विवाह व पलायन आम सी बात है।
ये यथार्थ सत्य हैं कि भारत ग्रामीण अंचलो मे बसता हैं व यहाँ की संस्कृति व सभ्यता की मूल धरोहर भी गांव में बसती हैं। सूक्ष्मता से देखे तो भारत मे परिवर्तन की बयार भी गाँवो से शुरू हुई जिसका गहरा असर यहां के बच्चों पर हुआ। अब जैसे जैसे मन को लुभाते भौतिक संसाधन बाजारों की दुकानो पर सज जाते है वैसे ही बडे बडे भी इस मोह माया के जाल में भटक कर जेबे खाली करते जा रहे। अब बात आती हैं विद्यार्थी वर्ग की ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर विद्यार्थी ऑफ़ लाइन क्लास में अधिकाधिक उपस्थिति के साथ आए वह भी प्राइवेट संस्थान में, जबकि सरकारी स्कूलों में इसकी संख्या बहुत कम रही। क्योंकि अधिकतर विद्यार्थी मोबाइल व फीस व किताबो की पूर्ति हेतु पलायन पर निकल गए जहां वह शहर में श्रमिक का कार्य कर नित्य वेतनभोगी के रूप में काम करके अपना व परिवार का खर्च निकाल रहे।
वही ऑन लाईन क्लास ने विद्यार्थियों में एक और कॉम्पिटिशन की शुरुआत की वह हैं बेस्ट कम्पनी का मोबाईल। इतना महंगा मोबाईल तो एक शिक्षक भी खरीदने के पहले सोचेगा की उसकी आवश्यकता का स्वरूप भी इसमें हैं या नही ।
वही विद्यार्थी वर्ग का चित्त अब अध्ययन से ज्यादा स्टेटस की दुनियाँ में आ गया हैं चित्त इतना चंचल हैं कि स्टेटस जीवंत भाव मे आ गए और यही बात उन्हें अध्ययन से दूर ले जा रही। खैर दोष किसका कहे कम उम्र तो सिर्फ मार्गदर्शन चाहती हैं लेकिन समय को देखते हुए पूरी दुनियाँ मोबाइल स्वरूप इलेक्ट्रिक डिबिया में सिमट चुकी है चाहे अच्छी है या बुरी पर हाथ में तो देनी ही पड़ेगी ।बहुत कम विद्यार्थी ही मोबाइल का पूर्णतः फीचर्स का सार्थक उपयोग कर पाते अधिकतर तो इंस्टाग्राम , व्हाट्सएप , यू ट्यूब , नेटफ्लिक्स आदि में दिन रात निकाल रहे।
आखिर मन पढ़ने में लगे भी तो कैसे इतना सुंदर खिलौना और दूसरी तरफ किताबो की दुनिया निश्चिततः भविष्य के प्रति सजगता ही पुस्तको की और मुख करवाएगी।
वही कई विद्यार्थी इस काल मे नशें की आदतों के भी शिकार हुए है ओर अपराध जगत में प्रवेश कर गए । कारण कई परिवार अभावों में बच्चों का पालन पोषण कर रहे हैं और वही बच्चो के मन की उड़ान काफी ऊँची रही हैं ।जिसमे भ्रमित आधुनिक दुनियाँ देख मन कुलाचे मार रहा मोबाइल की रंगीन दुनिया का स्वागत करने को । ऐसे में चित्त की स्थिरता असम्भव हैं अब यहा ग्रामीण अंचल की बात करे या शहर की सभी मे *फ़ैशन स्टंट* का त्वरित भाव तीव्रता से जाग्रत हुआ है । चंचल मन ऑन लाईन स्टडी से ज्यादा ऑन लाईन शॉपिंग को तेजी से अपनाता जा रहा ओर अब OTP/PIN में अटका है स्वर्णिम भविष्य । ये भाव हमारे आदर्श वाक्यो को एक तरफ रख देगा ।लेकिन हा भविष्य के स्वप्नों की उड़ान भी इन विद्यार्थियों की बहुत ऊंची हैं जो कई बार वास्तविकता से परे लगती हैं किंतु उन्हें वास्तविकता का अहसास कराना हमारी प्राथमिकता होगी।
खैर वर्तमान में बढ़ता संक्रमण व ओमीक्रोन का खतरा कुछ महीनों के अंतराल से बढ़ता जा रहा है वही समय आ गया वार्षिक परीक्षा का जिसमें चंद महीनों का अंतर लग रहा । मानो अभी तो सेशन शुरू हुआ था अचानक अंतिम पड़ाव कब आ गया पता नही लगा। वही लगातार प्रमोशन के चलते विद्यार्थी अपने मूल अध्ययन से भी काफी दूर हो गया औऱ *आत्मविश्लेषण* जैसी बात से कोसो दूर है। लेकिन इस किशोरवय की *उड़ती पतंग* की डौर भी हाथों में थामे रखना अति आवश्यक हैं।
वैसे कहा जाता जो सत्य भी हैं कि मन पंक्षी के समान हैं जो डोलता रहता हैं क्योंकि मायावी दुनिया का भ्रमित जाल उसे अपने से दूर नही होने देता। जिसकी चरम सीमा हैं सुख प्राप्ति की दौड़। चाहे पैसे , घर या खाना या अन्य भोतिक संसाधनों में सुख ढूंढना फिर एक मिल भी जाये तो अगली इक्छा शुरू हो जाना जहा सन्तुष्टि का कोई अंत नही है।मन चंचल हैं बलवान हैं जिद्दी व प्रमाधि हैं। इस कारण हम अपने लक्ष्य से भटकते रहते है।
इस ऑन लाईन-ऑफ़ लाइन के परिवर्तन शील दौर में इस विद्यार्थी वर्ग के चंचल चित्त को समझाना व समझना अति आवश्यक हैं अब हम पुरानी शिक्षण पद्धति या पैटर्न को पढ़ाते रहे तो निश्चित ये पीढ़ी उसे स्वीकार नही करेगी ।
वही आना हुआ नवीन शिक्षा पद्धति का निश्चिततः इसमें बुनियादी शिक्षा चरित्र निर्माण व व्यक्तित्व विकास पर जोर दिया गया हैं जो विद्यार्थियों के स्वर्णीमभविष्य का रास्ता आवश्यक दिखाएगी लेकिन इसके पहले हम सभी का वास्तविक होम वर्क या शिक्षकों व पालको का अध्ययन आवश्यक हैं।क्योंकि नई शिक्षा नीति हम सबको इसीलिए समझना है क्योंकि ये बालको के मनोभावों से जुड़ी हैं उनके रुचि अनुरूप उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
*जिम्मेदारी हमारी*
*किताबो से ही पढ़े ऐसे प्रोजेक्ट वर्क ज्यादा दिए जाएं जिसमे किताबो का अध्ययन अति आवश्यक हैं।
*नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों गुणवत्ता आधरित पद्धती हैं जिससे बालक आत्मनिर्भर बन सकेगा इसे आत्मसात करें।
*कोरोना के साथ शिक्षण ना रुकने वाली व्यवस्था बन सके इसके पूर्ण प्रयास के लिए पालक , शिक्षक व प्रबंधन के प्रयास सतत चलते रहना चाहिए।
*टिकाकरण अतिआवश्यक हेबबच्चो के सुरक्षित भविष्य के लिए टिकाकरण अवश्य करवाये।


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