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आलेख-
शीर्षक-खुद को ढ़ूढने चले”

लेखिका- स्नेहा दुधरेजीया
पोरबंदर गुजरात

“खोज रहा हूँ कब से खुद को,
खो गया हूँ, मैं ही मुझमें।
मैं ही नही मिलता
आजकल मुझको।”

आजकल के व्यस्त दौर में सब के सब कही खो से गये है।दुसरो के लिये वक्त निकाल पाना तो बहुत दूर की बात है खुद के लिए भी वक्त निकाल पाना मुश्किल हो गया है।

हम खुद के लिए कब और कितना जीते है पता ही नही चलता है।बचपन में हम सबसे ज्यादा खुश रहते थे, क्योंकि तब हम सिर्फ अपने लिए जीते थे। जरूरते कम होती है। मन में स्वार्थ, लालच, अहंकार, वासना, झूठ, फरेब जैसे कोई विचार नहीं होते थे। जैसे-जैसे हम बड़े होते गये वैसे वैसे मन में तरह-तरह के विचार भी बड़े होते गये और जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगी।

हमने अपने आज में जीना ही छोड़ दिया। इस दुनिया की भीड़ में व्यस्त इतना हो गये कि खुद को भुल गये। खुद के लिए फुर्सत ही नही रही ।जब हम बीमार होते है तभी ध्यान आता है की तभी थोड़ा सा एहसास होता है कि खुद को भी टाईम देना चाहिए।खुद के लिये हमे वक्त निकाला चाहिए।

बचपन में जो खेल हम खेल कर खुश होते थे,उन खेलो से कैसे ध्यान हटता गया,कैसे हम बड़े होते गये, पता ही
नही चला। हम कहा अपनी खुशियों को छोड़ आए पता ही नही चला।
धीरे धीरे दुनियां की इस भीड़ मे हम खुद को कही खोते चले गए। छोटी छोटी खुशियों की जगह जरूरत और रूपयों ने कब ले लिया पता ही नही चला।
क्या कभी खयाल आया के हम आईना तो देखते है रोज पर हम खुद की असली खुशी को ही नही देख पाते।कहते है कि, life is Golden period of joy पर लाईफ को गोल्डन तो क्या हमने मिट्टी कि भी नही रहने दिया।ऐसा इसलिए कह सकते है, क्योंकि जिसे हम अपना समझकर हाथ आगे बढ़ाते है वही हमारे मन को तोड़ कर चला जाता है। ऐसा क्यों होता है क्योंकि हम खुद को किसी को सौंप देते है ?
यही गलती हमारे लिए मुसीबत बन जाती है।हमें अपना आत्मसम्मान व खुशी से समझौता कभी नही करना चाहिए चाहे रिश्ता कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो।रिश्ता वही निभाना चाहिए जिसमें इमानदारी दोनों तरफ बराबर हो।

हम इस दुनियां में अकेले आए थे ,जाने वाले भी अकेले ही है तो, क्यों ना हम खुदके लिये कुछ वक्त निकाले।सभी जिम्मेदारी को निभाते हुए वो भी सब करे, जो हमें खुशी दे,शांति दे।हमें भी ऐसा लगे कि, हम भी जीवन में कुछ कर सके ,मेरी भी अपनी पहचान है।
मेरा तो ये मानना है कि ,जो इंसान खुद से प्यार नही कर सकता वो किसी से भी प्यार नही कर सकता।खुद के लिये जीने वाला इन्सान ही दुसरो को खुशी दे सकता है।जब खुद को पाकर ही हर खुशी मिलती है कामयाबी मिलती है तो, चलो ना ढुंढते हे खुदको।आईने के सामने खडे होकर कहते है कि,”i love me” फिर देखो जादू।
सब के लिये सब कुछ करो पर खुदके लिये भी जी भरकर जी लिया करो। यार ये जिंदगी जीने के लिये मिली है ,मर मर के जीने के लिये नही।तो जाओ निकल पड़ो कही से खुद को ढ़ूढ लाओ।


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