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कविता

शीर्षक मैं और प्रकृति

लेखिका वीना राय आजमगढ़ उत्तरप्रदेश

उस जगह का पता
बता दे ज़रा
जहाँ मुझे मेरे
हृदय का स्पंदन सुनाई दे
बहुत दूर कहीं धरती का
अम्बर से मिलन दिखाई दे
खो दूँ जहां मैं पहचान अपनी
बन जाऊँ अंग प्रकृति की
हो दीवारें फूलों की क्यारियाँ
नदी का जल शीतल-पावन
समेटने को प्रकृति का आँचल
बाहें फैला दूँ मैं असुध बन
बातें करूँ बस पंछियों से
बेलों को झूला बनाऊँ
उन्मुक्त हवा के संग
मैं भी इधर-उधर लहराऊँ
ना हो कोई सीमा, ना कोई बंधन
हो ऐसे स्वच्छंद मेरा तन-मन, ,,


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