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कैसी होती है पुलिस की ट्रेनिंगऔर कैसे निभाते हैं पुलिस कर्मी नौकरी की जिम्मेदारी
लेखिका स्नेहा उर्फ शोभना दुधरेजीया पोरबंदर गुजरात
जब पुलिस की नौकरी मिली तब खुशीका कोई ठीकाना नही था।खाखी पहेनने का वो जुनुन ऐसा था की जल्दी से वर्धी पेहन ले बस।पर ये राह उतनी आसान नही थी।हर रोज बस ऐकही इन्तजार था कि कब ट्रेनिंग शुरू होगी और कब हम वहां जाएंगे। कैसा होगा ट्रेनिंग सेंटर वहां क्या होगा कैसी ट्रेनिंग दी जाएगी ये सारे ख्याल मन में चूहे की तरह इधर उधर इधर उधर दोड रहे थे।और आख़िर वो दिन आ ही गया जब हमारी ट्रेनिंग स्टार्ट होने को आई ।और हमें बोरिया बिस्तर लेकर ट्रेनिंग सेंटर में बुलाया गया।ट्रेनिंग सेंटर को देख के ही इतनी ख़ुशी हो रही थी।
जब हमने पेहली बार ग्राउंड में पेर रखा था तब हमे दीवालो के अलावा कुछ नही दिख रहा था ऐसा लगता था के भाग जायेंगे यहां से ज्यादा दिन नहि टिक पायेंगे।अे.डी.आई शब्द पेहली बार सुना था।सारी रात यही ख्याल आता रहा मनमें के ये अे.डी.आई क्या होता हैं क्या होगा कल?फिर वो दिन आ ही गया वो सुनहरी सुबह। इसका बहुत वक़्त से इंतजार था। सुबह पांच बजे उठना और विसल बजने पर जल्दी से ग्राउंड पर पहुंच जाना।ये था जिंदगी का पहला ऑर्डर। यही रूटीन सुबह से शुरू हो जाता था सुबह पांच बजे उठना और वीसल बजने पर ग्राउंड पे फालिन हो जाना था।दौड़ पीटी और व्यायाम वही रोज का काम हो गया।एक दो एक दो और कदमताल अौर पीटी ड्रेस में पुरा दिन फालिन रहना पड़ता था ।परेड रोल कॉल और टाइम से सोना और टाइम से खाना।ये सारे डिसिप्लिन जैसे जिंदगी का ऐक हिस्सा बन चुके थे ।जब कभी ग्राउंड में लेट पहुंचते थे तो सज़ा मिलती थी सजा ग्राउंड में लेट पहुंचने के लिए नहीं पर डिसिप्लिन में रहने के लिए थी। ग्राउंड की उस सजा में भी अलग ही मज़ा था जिस हाथ में कभी लाठी भी नहीं पकड़ी थी उन्ही हाथो से वेपन को पकड़ा।फायरिंग प्रैक्टिस की। उस ग्राउंड की बात ही कुछ अलग थी चाहे सर्दी हो या गर्मी हो या बारिश का मौसम हो कोई फर्क नहीं पड़ता था बस ग्राऊंड में जाते ही एक अलग ही सुकून मिलता था। कश्मीर की हरियाली के जैसे पेड़ थे हमारे ग्राउंड पर।और घास भी बहुत सारी थी जिन्हें हम खुरपी से निकाला करते थे वो होता था हमारा वर्किंग टाइम ।तेज चाल छोटे कदम और दौड़ यही सब तो होती हे रिक्रूट की लाइफ कभी कभी तो मन में ख्याल आता था कि ये दौड़ कदम ही क्यों? और छोटे कदम ही क्यों?और जो ए.डी.आई सर होते थे उनका यही काम होता था।हम सबके पास एक पीला झोला था और उस झोले का बटन खाली ब्लैक था ।सारे झोले एक जैसे दिखते थे उसके के अन्दर हम सबका खजाना हुआ करता था ख़ज़ाने में एक थाली गिलास कटोरी चम्मच पानी की बॉटल यही सब तो हमारी पूंजी थी ।जब सुबह ग्राऊंड में जल्दी फालिन होना पडता था तो लेट होने पर सबके पास एक ही बहाना था सुबह उठने में थोड़ा लेट हो गया। फिर क्या फिर तो सजा मिलती थी ।वो सुबह की सुनहरी धूप में आराम भी करते और वर्किंग की मजाभी लेते थे। लोक्लास की भी एक अलग ही मजा थी सालों के बाद फिर से एक टीचर के साथ पढ़ाई करने की जैसे कोई सजा मिली हो ऐसा लग रहा था। जिस हॉल में हम बैठा करते थे वहां छत पर छतीस पंखे थे ।और उनका और हमारा रिस्ता बहुत ही गहरा था वहां बैठे बैठे ऐसे ख्याल ही मन में घूमा करते थे ।और वहा सामने एक स्टेज था जिस पर एक टेबल पड़ा हुआ था और टेबल के पास एक खुर्शी पड़ी थी कभी कभी उस टेबल की और देखने पर ऐसा लगता था कि कोई खड़ूस प्रिंसिपल हमारी और देखते ही रहता है और वहीं पर एक माइक रखा हुआ था।जिस माइक को देख के ये लगता था कि कोई पड़ोसी हरदम किसी और के घर में झांकता रहता है।फिर वहां से आगे बढ़े तो दिवाल पर जो स्विच बोर्ड लगे हुए थे उन पर बारह प्लग और एक बोर्ड था और उस पर थ्रीपिन का बहुत ही बड़ा अत्याचार था क्योंकि उस थ्रीपिन पर पता नहीं कितने सारे प्लग लगे हुए थे।ऐसा लगता था कि सारा मोहल्ला यही इकट्ठा हो गया है। एक बोर्ड में पता नहीं कितने सारे प्लग लगे हुए थे वहीं पर पीछे एक टी वी था एक सेट टॉप बॉक्स था और टीवी को देख के ये सोचा करते थे कि पता नहीं कब इस टीवी पर हमें पिक्चर देखने को मिलेगी।और वहां से जो खिड़की थी उस खिड़की से सीधा मेस दिखता था। खिड़की से बाहर देख के हमारे मन में एक ही ख्याल आता था कि आज सुबह देर से उठने की वजह से चाय तो नहीं मिली थी पर जल्दीसे ये लोक्लास ख़त्म हो और मेस में खाना खाने चले जाएं ।मेस के अन्दर जाकर खाना खाने की एक अलग ही मजा थी उस समय ऐसा लगता था कि मेस के सारे पंखे टेबल भी हमारी राह देख रहो हो और हमारे पहुंचने पर जैसे कहते हो कि आ गए तुम । यही तो जिंदगी थी और यही शायद ज़िन्दगी की सच्ची खुशी थी।ऐसे ही रात हो जाती थी फिर सुबह हो जाती थी बाहर की दुनिया से जैसे तो बिल्कुल अनजान थे जैसे कोई बच्चा मां की कोख में सुरक्षित होता है वैसे ही हम नव महीने तक वहां पर सुरक्षित थे और इस तरह ट्रेनिंग पूरी हुई और वो दिन आया जिस दिन हमारी पासिंग आउट परेड हुई और वही पल हमारी जिंदगी का लाइफ चेंजिंग पल था उस दिन आंखों में आंसू तो थे पर शायद ये ख़ुशी के नहीं थे सबके साथ जो वक़्त बिताया ग्राउंड में मेस में रूम में हर चीज की यादे जुड़ी हुई थी कहते हैं ना कि आपके पास अगर कोई चीज हो तभी उसकी कद्र आपको नहीं होती उसके जाने के बाद आपको तकलीफ होती है और शायद ये आंसू भी उसी तकलीफ के थे क्यूंकि हम यहां से जाना ही नहीं चाहते थे हमारे जो ए.डी.आई. सर थे वो हमेशा एक बात कहां करते थे कि ग्राउंड हमारी माता है और हम उनकी प्यारी संतान है जैसे बच्चे अपनी मां की गोद में आकर सब दर्द भुल जाते हैं और ठीक हो जाते हैं वैसे ही एक पुलिस जवान ग्राउंड पर जाते ही एकदम ठीक हो जाता है। जिस तरह मिट्टी का कोई धर्म नहीं होता वैसे ही ” खाखी “का भी कोई धर्म नहीं होता।एक वक्त ऐसा था कि यहा पे आने के बाद हम यहां रहना नहीं चाहते थे ।और आज यहां से जाना ही नहीं चाहते। फिर हुआ हमारा नया जन्म रिक्रूट से सीधे बने एक पुलिस जवान।और तब जाके ट्रेनिंग की अहमियत समझ में आई।
पुलिस की नौकरी सब को पसंद है। वर्दी का खाखी रंग और मिट्टी का खाखी रंग दोनों एक ही है। खाखी रंग की वर्दी कर्तव्य जिम्मेदारी,संघर्ष का परिचायक है।
जब पुलिस कि नौकरी मिलती है, तब सबको बहुत खुशी होती है। एक जुनून होता है,एक जोश होता है ,देश की सेवा और देश के लोगों के सुरक्षा के प्रति।
जीवन जबतक है, कुछ ना कुछ परेशानी आती ही रहती है। छोटे-मोटे पड़ाव जीवन में आते जाते रहते है।
परंतु कभी कभी कुछ बड़ा कुछ ऐसा जीवन में हो जाता है जिसे जीवन भर भुलाया नही जा सकता,एवं जीवन भर चुभता रहता है,दर्द देता रहता है।
कभी कभी लोग अवसाद तक के शिकार हो जाते है ,
आत्मविश्वास टुट जाता है, और वो आत्महत्या की बात सोच लेते है ,मनोबल कमजोर हो जाता है ।एक घाव जो समय के साथ भर तो जाता है मगर वो इंसान अंदर से टुट जाता है। इस परिस्थिति से निकलकर यदि कोई पुलिस की नौकरी करता है तो वह दुनियां जीत लेता है।
आप को पता है जब कोई खाखी पहनता है तो उनकी जो भावनाएं होती है खाखी से लगाव जो होता है,उसके लिए ,अन्य भावनाओं को तथा,अन्य किसी चीज के प्रति लगाव को छोड़ना पडता है।सिर्फ और सिर्फ कर्त्तव्य और जिम्मेदारी को याद रखना पड़ता है । हम सभी जानते हैं कि देश के हर क्षेत्र में हो रहे संगिन अपराधों से निपटने के लिए पुलिस कि कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है यह बात किसी से छुपी नहीं है। पुलिस अपराधीयो से नागरिकों की सुरक्षा करती है।
जब सारी दुनिया दिपावली, होली नवरात्रि मना रही होती है ,वही पुलिस वाले सारे त्यौहार में तो डयुटी पर डटे रहते है। अपना कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारी निभा रहे होते है।पुलिस के सारे त्यौहार उनकी ड्युटी होती है।
आप सब ने देखा ही होगा पुलिस के जवानों को जो, शहर के चौराहे पर या ,शहर या गांव के कई खास जगहों ड्यूटी देते हुए। रात दिन धूप बारिश सब में एक समान ड्युटी देते है।
जिस जगह उनको ड्युटि की जिम्मेदारी दी गई होती है, उसी जगह वे डटे रहते है।आप सब को भी कभी न कभी ये ख्याल जरूर आया होगा कि,रात दिन एक करनेवाले ये लोग भी इंसान है।
जब प्यास लगती है तब पांच मिनट बिना पानी के नही रहा जा सकता है , पर ये पुलिस के जवान एक पैर पर ड्यूटी करते है ।अपनी कर्तव्य निष्ठा से अपनी सभी जिम्मेदारी निभाते हैं।अगर कोई फंक्शन हो और वहां पे पुलिस जवान तैनात हो सभी उनको सुपरहीरो ही समझते हैं सब लोग ये सोचते हैं कि पुलिस को न तो गर्मी लगती है न सर्दी लगती है न पुलिस कभी थकती है।हां ये बात सच है कि ट्रेनिंग में हमें बहुत कुछ सिखाया गया है।पर होते तो पुलिस भी ऐक इंसान ही ना।कोरोना जैसी महामारी मे जिस तरह पुलिस ने काम किया था।जिस कर्तव्य निष्ठा से अपना धर्म निभाया था।वो सभी आज तक याद करते हैं।उस महामारी में अपने कर्त्तव्य को निभाते हुए कई पुलिस जवान शहीद भी हो गए थे।पुलिस में सिर्फ पुरुष जवान ही नहीं महिला जवान भी उतने ही कर्तव्य निष्ठा से अपना धर्म निभाती है ।लोगों की रक्षा करना ही उनका धर्म होता है।जिस दिन से कोई भी इंसान पुलिस में भर्ती होता है उस दिन से वो सारे रिश्ते नाते धर्म सब कुछ छोड़ चुका होता है और उसका ऐक ही धर्म होता है लोगो कि रक्षा करना और ऐक ही परिवार होता है पुलिस परिवार।
घर में जब किसी रिश्तेदार की शादी हो तो, एक साल पहले से तैयारी शुरू हो जाती है ,पर जब किसी पुलिस के जवान की खुद कि शादी हो तो उनको जल्दी छुट्टी नही मिलती है,सिमित समय की छुट्टी में पुलिस वाले अपनी शादी समारोह को निपटाते है।
क्या उनका परिवार नही होता ? बच्चे नही होते ?उनके बच्चों को जो वक्त दिया जाना चाहिये वो वक्त पुलिस के जवान देश के लोगो की रक्षा मे लगा देते है।
पुलिस के जवानों को भी पारिवारिक और सामाजिक काम होते है पर, पर वे कभी भी अपने कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारी से पीछे नही हटते।
सिर्फ खाखी पहनेवाला ही नही उनका पुरा परिवार भी मजबूत होता है । परिवार के लोग मजबूती से सारी जिम्मेदारी निभाते है।खासकर पुलिस के जवानों की
पत्नियां बच्चों के लिए माता पिता दोनों की जिम्मेदारी
निभाती है।
कही कही तो पति पत्नी दोनों पुलिस में होते है ,एवं बच्चों की परवरिश करते हुए शान से ड्युटी करते है।
समाज में मनाये जानेवाले सारे त्यौहार एवं समारोह से इन्हे दूर रहना पड़ता है,मन कि सारी ईच्छाओ को मन में ही दफनाना पडता है। जब कोई पुलिस का जवान पुरुष हो तो ,उनके सारे घर की जिम्मेदारी उनके घर की स्त्री संभाल लेती है।
पर जब “पुलिस”कोई महिला हो तो ,उनका बच्चा मन मे कहता होगा में कि, मेरी मां बहुत मजबूत है , मेरी मम्मी पुलिस है।
यही सोचकर उनके बच्चे बड़े हो जाते है। कहने का मतलब यह है कि ,पुलिस जवान ही नही उनका पुरा परिवार भी मजबूत होता हैं। कहने को तो वे मजबूत होते है ,पर होते तो इंसान ही है।
एक बार इनके मन को टटोल कर देखिये इनके अंदर भी एक आम इंसान मिलेगे।
खाखी का रंग जितना गहरा होता है, उतना ही गहरी जिम्मेदारी होती है ।
पुलिस की नौकरी सिर्फ नौकरी नही है, बहुत बड़ी जिम्मेदारी,कर्तव्य है ,जिसमें जीवन के कई अहम हिस्सो को खोना पड़ता है।
पुलिस की नौकरी करने के लिये हिम्मत चाहियें होती है।कभी कभी खुद को तोड़कर, सब को जोड़ना पडता है। खुद पर एक भरोसा रखना पड़ता है।
पुलिस के जवान का जीवन संघर्ष से भरा होता है।कोई चेहरा उनका अपना नही होता है ,पर सब कि रक्षा करना उनका एक धर्म बन जाता है।
जब कोई महिला पुलिस जवान शाम को ड्यूटी से घर लौटती है ,तब उनके बच्चे सोचते है कि, मेरी मम्मी के काम का वक्त फिक्स नही होता है, अगर फिक्स होता तो ,मैं भी दुसरे बच्चों कि तरह अपनि मां के गोद मे लेटता, कुदता ,खेलता बहुत सारी कहानी सुनता।
पर जब मैं सो जाता हूं तब मां ड्युटी से आती है।
कई बार तो बच्चे पुछते ही होगें कि, कब आओगी मम्मी या पापा???? पर उनका जवाब सिर्फ ऐक मुस्कुराहट ही होता हैं।कभी सोचा है कि अगर एक दिन सारी पुलिस छुट्टी पर चले जाएं तो उस दिन एहसास होगा कि पुलिस की क्या अहमियत है और पुलिस क्यों जरुरी है।शायद हम पुलिस शब्द का अर्थ समज ले तो पुलिस की अहमियत और उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा को भी समझ पाएंगे । पुलिस छ अक्षर का शब्द हे Police में P का अर्थ है Polite यानी की सभ्य होता है और इसके बाद आता है O अक्षर जिसका अर्थ होता है Obedient जिसे हिंदी में आज्ञाकारी कहा जाता है इसके बाद आता है L जिसका अर्थ होता है Literate जिसे हिंदी में साक्षर कहा जाता है इसके बाद आता है i (आई) जिसका अर्थ होता है Intelligence जिसे हिंदी में बुद्धिमान कहा जाता है और C का मतलब होता है Clever जिसे हिंदी में चतुर या चालाक भी कहा जाता है। अंत में आता है E जिसे Elite कहा जाता है जिसका मतलब हिंदी में श्रेष्ठ होता है।जब पुलिस शब्द का अर्थ ही इतना अच्छा बताया गया है।पुलिस की नौकरी उतनी ही कठिन है।जीस तरह सेना के जवान सरहद पर रक्षा करते हैं उसी तरह पुलिस देश के क़ानून और लोगों की रक्षा करती है।
“कहते है कि ,रास्ते भी जरुर थक जायेंगे, आप को दौड़ा दौड़ा कर, मगर शर्त बस इतनी है कि , आप को खुद पे यकीन होना चाहिए। ”
इस वाक्य को सार्थक करती है,पुलिस जवान की नौकरी।
” जय हिंन्द”