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चश्मे का माइनस, प्लस और सिलेंडरिक पावर तीनों को हटाने की एडवांस तकनीक

महामारी के दौरान मास्क लगाना हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया है, ऐसे में चश्मा पहनने वाले लोगों की परेशानियां बढ़ गई हैं। चूंकि ऐसे लोग न तो मास्क हटा सकते हैं न चश्मा, ऐसे हालात में लेंस पर फॉगिंग (वाष्प बनना) उनकी परेशानी का सबब बन रही है। इस समस्या से निजात पाने के लिए लोग अब आंखों में ही लेंस लगाने वाली सर्जरी पसंद कर रहे हैं। हालांकि चश्मा पहनने वालों को फॉगिंग से निजात पाने के लिए मास्क पर ही ऊपर की तरफ से टेप चिपका देना सबसे अच्छा उपाय है, लेकिन इसे हमेशा नहीं किया जा सकता। इसके स्थायी निदान के लिए कई लोग अब चश्मे से छुटकारा पाने वाली सर्जरी चुनने लगे हैं। इस प्रक्रिया में आधुनिक शल्य क्रिया के साथ ही अत्याधुनिक कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।
चश्मा हटाने के लिए सर्जरी का चलन बढ़ रहा है। समय के साथ इससे जुड़ी सर्जरी में एडवांस तकनीक भी ईजाद हो गई हैं। आमतौर पर इस प्रकार की सर्जरी को लेजर विजन करेक्शन कहा जाता है। जिसमें कॉनिया के आकार को बदल कर पर्दे पर पडऩे वाले फोकस को ठीक किया जाता है। जिससे मरीज को चश्मे की जरूर नहीं पड़ती। पहले जहां 22 एमएमचीरा लगाकर यह सर्जरी की जाती थी, तो अब स्माइल सर्जरी के लिए केवल 2 एमएम चीरा लगाकर यह सर्जरी हो जाती है। वहीं कंटूरा विजन सर्जरी में चश्मे का माइनस, प्लस और सिलेंडरिक पावर तीनों को हटाने की सबसे एडवांस तकनीक है। नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइट के डायरेक्टर डॉक्टर महिपाल सचदेव ने बताया रिफ्रे क्टिव सर्जरी यानी चश्मे हटाने की सर्जरी के लिए सबसे जरूरी है कॉर्निया के आकार को बदलना। आकार जब बदला जाता है तभी पर्दे पर फोकस सही से होता है। इसके लिए कॉर्निया के कर्व यानी कर्वेचर से सर्जरी कर टिशू निकाला जाता है, जिससे मरीज की आंखों का पावर परमानेंट बदल जाता है और मरीज बिना चश्मे के फोकस कर पाता है। हालांकि डॉ. महिपाल का कहना है लेजर रिफ्रे क्टिव सर्जरी कई साल से है। लेकिन समय के साथ इसमें एडवांसमेंट आई है।
डॉ. महिपाल ने कहा कि चश्मा हटाने के लिए पहले लेजर सर्जरी की जाती थी, लेकिन उसमें फ्लैप बनाया जाता था। 22 एमएम का चीरा लगता था। इतने बड़े चीरे से टिशू निकाला जाता था। लेकिन अब स्माइल सर्जरी में फेम्टोसेकंड लेजर का इस्तेमाल होता है। इसमें 22 एमएम की जगह मात्र 2 एमएम के चीरे से ही टिशू निकाल लिया जाता है। यह कीहोल सर्जरी है, ब्लेडलेस है। इसमें पलैप नहीं लगाना पड़ता है। इतने छोटे चौरे से ही कॉर्निया के कर्व को कम कर दिया जाता है। इसका फायदा -यह है कि कॉर्निया की स्ट्रेंथ बेहतर बनी रहती है, नर्व कम कटती है इसलिए सर्जरी के बाद ड्राइनेस कम आती है। इसका रिजल्ट बेहतर होता है और लंबे समय तक बना रहता है। दोबारा सर्जरी की संभावना बहुत ही कम पड़ती है। उन्होंने कहा कि 20 साल से ऊपर के मरीज जो चश्मा हटाना चाहते हैं, और बार-बार उनका नंबर नहीं बदल रहा है। ऐसे लोग यह सर्जरी करा सकते हैं। इसमें माइनस और सिलेंडरिक पावर दोनों में फायदा होता है। वहीं कंटूरा विजन सर्जरी कॉर्निया के कर्व को ठीक करने की एक आधुनिक तकनीक है, इसमें कस्टमाइज लेजर का प्रयोग होता है। मरीज की दो प्रकार की जांच के जरिए कर्वेचर को ठीक किया जाता है। इसमें क्वालिटी ऑफ विजन ज्यादा अच्छी है। यह तीनों प्रकार के पावर माइनस, प्लस और सेलेंडरिक में काम करता है।
प्रस्तुति : उमेश कुमार सिंह


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